फ्री राशन के लिए सरकार कहाँ से लाती है पैसा?

आजकल हमारे देश में फ्री की रेवड़ी बाँटकर वोट बटोरने की संस्कृति लाने की भरसक प्रयास किया जा रहा है। ये रेवड़ी संस्कृति देश के विकास के लिए बहुत घातक है। रेवड़ी संस्कृति वालों को लगता है कि जनता जनार्दन को मुफ़्त की रेवड़ी बाँटकर उन्हें ख़रीद लेंगे, हमें मिलकर रेवड़ी कल्चर को देश की राजनीति से हटाना है।कोई और राजनीतिक दल बाँटे तो रेवड़ी और वो भाजपा सरकार बाँटे तो विटामिन की गोलियां…

लोगों को फ्री में चीज़ें या पैसे देने से राजनीतिक दलों के वादों पर मीडिया में बहस के दौरान अक्सर विपक्षी नेता ये तर्क देते हुए देखे-सुने जा सकते हैं। यहाँ तक कि यह मामला उच्चतम न्यायालय भी पहुँचा था और उच्चतम न्यायालय ने इसे गंभीर मुद्दा बताते हुए कहा था कि वेलफ़ेयर स्टेट होने के नाते मुफ़्त चीज़ें ज़रूरतमंदों को मिलनी चाहिए, लेकिन अर्थव्यवस्था को हो रहे नुक़सान और वेलफ़ेयर में संतुलन बिठाने की ज़रूरत है।वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने फ़रवरी 2024 में अपने बजट के भाषण में बताया था कि फ्री राशन योजना पर चालू वित्त वर्ष में दो लाख करोड़ रुपये खर्च किया जाएगा।केन्द्र की भाजपा सरकार ने नवंबर 2023 में ही घोषणा कर दी थी कि इस योजना को अगले पाँच साल तक यानी 2028 तक जारी रखा जाएगा।वित्त मंत्री के बजट अनुमान को आधार बनाया जाए तो इस योजना से सरकारी खजाने का बोझ तकरीबन 10 लाख करोड़ रुपये होता है।इस योजना को जून 2020 में शुरू किया गया था, इसके बाद से इसकी समय सीमा को कई बार आगे बढ़ाया गया है. अब इसकी डेडलाइन दिसंबर 2028 तक बढ़ाई गई है।

करोड़ो रूपए कहां से जुटा रही सरकार?

जब 2014 में मनमोहन सरकार को हटाकर भाजपा सरकार सत्ता में आई तो सब्सिडी बिल में उसे सबसे अधिक राहत मिली पेट्रोल-डीज़ल और फर्टिलाइज़र्स की कम होती अंतरराष्ट्रीय कीमतों से। मोदी सरकार के पहले कार्यकाल यानी 2014-15 से लेकर 2018-19 तक भारतीय रिफ़ाइनरी कंपनियों ने 60.84 प्रति बैरल की दर से कच्चा तेल आयात किया जबकि इससे पहले के पाँच वित्त वर्षों (मनमोहन सरकार 2.0) में ये दर औसतन 96.05 डॉलर प्रति बैरल थी।

रिसर्च एनालिस्ट आसिफ़ इक़बाल कहते हैं, भाजपा सरकार के पहले कार्यकाल में कच्चे तेल की सस्ती आयातित दर ने सरकारी ख़ज़ाने में संतुलन साधने में अहम भूमिका निभाई, भाजपा सरकार इस मायने में भी चतुर रही कि उन्होंने सस्ते आयातित तेल का पूरा फ़ायदा भारतीय उपभोक्ताओं को नहीं दिया यानी पेट्रोल, डीज़ल के दाम नहीं घटाए. उलटे पेट्रोल, डीज़ल के अलावा दूसरे फ्यूल प्रोडक्ट्स पर एक्साइज़ ड्यूटी भी बढ़ा दी।साल 2012-13 में पेट्रोलियम उत्पादों पर जहाँ केंद्र सरकार 96,800 करोड़ रुपये की सब्सिडी दे रही थी, लेकिन उसे एक्साइज़ के रूप में सिर्फ़ 63,478 करोड़ रुपये का राजस्व मिल रहा था।साल 2013-14 में भी फ्यूल सब्सिडी जहाँ 85,378 करोड़ रुपये रही, वहीं इससे मिला एक्साइज़ राजस्व 67,234 करोड़ रुपये रहा। लेकिन इसके बाद की स्थिति उलट गई. साल 2017-18 और 2018-19 में जहाँ फ्यूल सब्सिडी 24,460 करोड़ रुपये और 24,837 करोड़ रुपये रही, वहीं इन पर एक्साइज़ कलेक्शन 2 लाख 29,716 करोड़ और 2 लाख 14,369 करोड़ रुपये हो गया।

बहस इस बात पर भी है कि अक्सर ग़रीबों को आगे रखकर फ्री योजनाओं या फ्री बीज़ का ऐलान किया जाता है, साथ ही सरकार ये भी दावा करती है कि उसके कार्यकाल के दौरान देश ने ख़ूब तरक्की की है और करोड़ों लोग ग़रीबी रेखा से बाहर आए हैं। पिछले दिनों मोदी सरकार के इस दावे के बाद कि 25 करोड़ लोग ग़रीबी रेखा से बाहर आए हैं, कई राजनीतिक दलों के अलावा सोशल मीडिया पर कुछ लोग सवाल पूछने लगे कि 25 करोड़ लोग ग़रीबी से बाहर आए हैं तो 80 करोड़ लोगों को मुफ्त भोजन क्यों?

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ख़ुद राज्यसभा में इस सवाल को कुतर्क बताया और इसका जवाब कुछ इस तरह दिया, हम जानते हैं कोई बीमार व्यक्ति हॉस्पिटल से बाहर आ जाए ना तो भी डॉक्टर कहता है कुछ दिन इसको ऐसे-ऐसे संभालिए, खाने में परहेज रखिए क्यों…कभी दोबारा वहां मुसीबत में ना आ जाए। जो ग़रीबी से बाहर निकला है ना उसको ज्यादा संभालना चाहिए ताकि कोई ऐसा संकट आकर के फिर से ग़रीबी की तरफ़ लपक ना जाए इसलिए उसको मज़बूती देने का समय देना चाहिए. ताकि वो फिर से वापिस उस नर्क में डूब न जाए।

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