इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसला लगेगा रोक, कब से शुरूआत हुई थी? चुनावी फंडिंग पर पड़ेगा असर

इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसला लगेगा रोक, चुनावी फंडिंग पर पड़ेगा असरविपक्ष ने शुरू से ही केंद्र सरकार को इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम को लेकर घेर रखा था अब सुप्रीम कोर्ट ने इसे असंवैधानिक क़रार दिया है।इस स्कीम के तहत जनवरी 2018 से जनवरी 2024 के बीच 16,518 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड ख़रीदे गए थे और इसमें से ज़्यादातर राशि राजनीतिक दलों को चुनावी फंडिंग के तौर पर दी गई थी।पिछले कुछ वर्षों में सामने आई रिपोर्ट्स में ये पता चला कि इस राशि का सबसे बड़ा हिस्सा केंद्र में सत्तारूढ़ भाजपा को मिला था।इलेक्टोरल बॉन्ड्स पर पारदर्शिता को लेकर कई सवाल उठ रहे थे और ये आरोप लग रहा था कि ये योजना मनी लॉन्डरिंग या काले धन को सफ़ेद करने के लिए इस्तेमाल की जा रही थी।

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इलेक्टोरल बॉन्ड्स पर सवाल उठाते हुए एसोसिएशन फ़ॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (एडीआर) कॉमन कॉज़ और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी समेत पांच याचिकाकर्ताओं ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाज़ा खटखटाया था।

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में इलेक्टोरल बॉन्ड पर क्या कहा है

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा है कि स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया को राजनीतिक पार्टियों को इलेक्टोरल बॉन्ड के ज़रिए मिली धनराशि की जानकारी 6 मार्च तक चुनाव आयोग को देनी होगी ये जानकारी चुनाव आयोग को 13 मार्च तक अपनी वेबसाइट पर प्रकाशित करनी होगी।Electoral Bonds क्या है? सुप्रीम कोर्ट ने इसे क्यों रद्द किया?चुनावी बॉन्ड एक पैसे देने का साधन है जो व्यक्तियों और कंपनियों को अपनी पहचान बिना उजागर किए, राजनीतिक दलों को वित्तीय सहायता करने की अनुमति देता है।

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम कब बनाई गई थी ।

साल 2017 में बजट सेशन में तात्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने यह योजना पेश की थी। 9 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इस योजना को लागू किया था। इलेक्टोरल बॉनड्स के जरिए आप देश की किसी भी राजनैतिक पार्टी को चंदा दे सकते हैं इसके लिए आपको बॉन्ड खरीदना होता है। ये बॉन्ड केवल आप सरकारी बैंक – स्टेट बैंक ऑफ इंडिया यानी SBI से ही खरीद सकते हैं। किसी और बैंक के पास आपको इलेक्टोरल बॉन्ड नहीं मिलेंगे। इलेक्टोरल बॉन्ड से ये भी सुविधा मिलती है, कि किसने, किस पार्टी को और कितना चंदा दिया। उसकी पहचान उजागर नहीं की जाती है पार्टी को भी पता नहीं चलता कि उसे किसने चंदा दिया है।

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम की खास बात

  • एसबीआई को इसकी जानकारी होती है। चुनाव आयोग या आम जनता इसके बारे में नहीं जान सकते है। कि किस पार्टी को, किसने, कितना चंदा दिया है।
  • ये इलेक्टोरल बॉन्ड किसी भी प्रकार के टैक्स के दायरे में नहीं आता, ना ही इस पर किसी तरह का ब्याज दिया जाता है।
  • साथ ही ये भी माना जाता है कि अगर विपक्षी पार्टी को किसी ने ज्यादा चंदा दे दिया तो सत्ता पक्ष उसको परेशान कर सकती है। और इसका उल्टा भी हो सकता है, इसीलिए इलेक्टोरल बांड के जरिए फंडिंग देने वाले की जानकारी गुप्त रखने का फैसला लिया गया।

कैसे खरीदे सकते हैं इलेक्टोरल बॉन्ड?

मान लीजिए आप किसी राजनैतिक पार्टी को 10 हजार रुपये का चंदा देना चाहते हैं तो इसके लिए आप SBI की किसी शाखा पर जा कर बताएंगे कि फलां पार्टी को 10 हजार रुपये दान करना चाहते हैं इसके बाद आपको बैंक में 10 हजार रुपये जमा करने होंगे और इसके बादले आपको 10 हजार रुपये का बॉन्ड मिल जाएगा। यही बॉन्ड राजनैतिक पार्टी को मिलेगा अब पार्टी के पास इस बॉन्ड को रीडीम करने के लिए केवल 15 दिन का समय मिलेगा, अगर पार्टी 15 दिन में बॉन्ड को रीडीम करती है तो बैंक में आपका जमा पैसा 10 हजार रुपये उस पार्टी के खाते में चला जाएगा अगर पार्टी 15 दिन में बॉन्ड का रिडिम्पशन नहीं करती तो आपका जमा पैसा प्राइम मिनिस्टर रीलीफ फंड को डोनेट कर दिया जाएगा।

इलेक्टोरल बॉन्ड कैसे जारी होता है?

  • आप किसी भी पार्टी को मन चाही राशि दान या चंदा नहीं दे सकते है। इलेक्टोरल बॉन्ड के तहत चंदे की रकम फिक्स होती है।
  • ये बॉन्ड: ₹1000, ₹10,000, ₹1,00,000, ₹10,00,000 और एक करोड़ का मिलता है।
  • धारक की मांग पर देय और ब्याज मुक्त।
  • भारतीय नागरिकों या भारत में स्थापित संस्थाओं द्वारा क्रय योग्य।
  • व्यक्तिगत रूप से या अन्य व्यक्तियों के साथ संयुक्त रूप से क्रय योग्य।
  • जारी होने की तारीख से 15 दिनों के लिये वैध।
  • ये आप के उपर है आप चाहे तो एक से ज्यादा बॉन्ड भी खरीद सकते हैं।

किस राजनैतिक पार्टी को चंदा मिल सकता है?

देश की सभी राजनीतिक पार्टी को चंदा नहीं मिल सकता है।इलेक्टोरल बॉन्ड के जरिए केवल उन्हीं पार्टी को चंदा मिल सकता है जो रिप्रेजेंटेशन ऑफ पीपल्स एक्ट 1951 के तहत रजिस्टर्ड हो और उस पार्टी को लोकसभा या विधानसभा चुनावों में कम से कम 1% वोट मिला हो।

इलेक्टोरल बॉन्ड से पहले कैसे होती थी राजनैतिक पार्टीयों को फंडिंग?

इलसे पहले 20,000 रुपये तक का कैश में चंदा देने वालों की जानकारियों को गुप्त रखा जाता था, उससे ज्यादा का चंदा देने वालों की जानकारी चुनाव आयोग को देनी होती थी। बाद में तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली ने 20000 रुपये को घटा कर ₹2000 कर दिया था, यानी ₹2000 तक का कैश में चंदा देने वालों की जानकारी गुप्त और उससे ऊपर का चंदा देने वालों की जानकारी चुनाव आयोग के पास होती थी। लेकिन अब जो इलेक्टोरल बॉन्ड आए उसमें हर किसी की जानकारी गुप्त है और इसकी जानकारी चुनाव आयोग को भी नहीं दी जाती है।

इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में क्या कहा?

इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम के लागू होते ही इसके खिलाफ कई याचिकाएं कोर्ट में दाखिल हुईं थी, याचिकाकर्ताओं का कहना है कि राजनैतिक पार्टियों को कौन कितना चंदा दे रहा है। ये आम जनता को मालूम होना चाहिए। उन्होंने ये भी कहा कि गुप्त रूप से सरकार की पार्टी को चंदा दे कर लोग या कंपीन सरकार इनडायरेक्ट फायदा ले सकते हैं। उन्होंने ये भी कहा कि जो कंपनी घाटे में है वो भी चंदा दे सकती है, ऐसा क्यों हैं। कंपनी के शेयर होल्डर्स को भी मालूम होना चाहिए कि उनकी कंपनी किस पार्टी को चंदा दे रही है। इसी पर माननीय उच्चतम न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि, “चुनावी बांड योजना अनुच्छेद 19(1)के अंतर्गत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार के तहत असंवैधानिक है। और इसे जारी करने वाली बैंक तुरंत चुनावी बांड जारी करना बंद कर दे।

अब तक कितने इलेक्टोरल बॉन्ड जारी हुए हैं।

जब संसद में कांग्रेस ने पूछा कि अब तक कितने इलेक्टोरल बॉन्ड जारी हुए हैं तो 5 फरवरी, 2024 को सत्ता पक्ष की ओर से जवाब में बताया गया कि कुल 16 हजार 518 करोड़ रुपये के इलेक्टोरल बॉन्ड जारी हुए हैं। आपको ये भी बता दें कि इसमें से 50% से ज्यादा बॉन्ड केंद्र की सत्ताधारी सरकार भाजपा को मिले हैं।

1 thought on “इलेक्टोरल बॉन्ड पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसला लगेगा रोक, कब से शुरूआत हुई थी? चुनावी फंडिंग पर पड़ेगा असर”

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