जनता के प्रोफेसर लक्ष्मण यादव की किताब प्रोफेसर की डायरी लोगो को बेहद पसंद आई

पूर्व एडहॉक असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मण यादव ने अपनी पहली किताब प्रोफ़ेसर की डायरी कुछ दिनों पहले ही पूरा किया और अब हफ़्ते भर से लगातार अमेजन की किताबों वाली बेस्ट सेलर श्रेणी में प्रथम स्थान पर बनी हुई है । जनता ने अपने प्रोफेसर को भर भर के प्यार दिया है

  • कौन है प्रोफेसर लक्ष्मण यादव
  • कहां मिलेगी प्रोफेसर की डायरी
  • डॉ लक्ष्मण यादव के प्रोफेसर की डायरी के बारे में क्या बोली जनता

प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मण यादव

पूर्व असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. लक्ष्मण यादव के चाहने वालों का कारवां तब शुरू हुआ था , जब प्रेशर लक्ष्मण यादव आजमगढ़ के छोटे से गांव से निकल करके आईएएस बनने के लिए दिल्ली आए थे एक साक्षात्कार में डॉक्टर लक्ष्मण यादव न्यूज पोर्टल ‘द मूकनायक’ से बताया है कि,

“यह सफर काफी लंबा रहा। आजमगढ़ के छोटे से गांव में गाय-भैंस चराने वाला काम करता था। मुझे यह कभी अंदाजा नहीं था कि मैं इस मंजिल तक पहुंच जाऊंगा। मेरे माता-पिता और परिजनों का इसमें अहम योगदान रहा है। घर के सभी लोगों ने मेरी शिक्षा के लिए कुर्बानियां दी। उन्होनें मेरे लिए सपने देखे। उन्होंने कलम और किताब की अहमियत समझकर मुझे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी पढ़ने के लिए भेजा।

हम उसी परिवार से आने वाले लोग हैं जिनके जूते फटे हुआ करते थे। जिनके घर में पेंट नहीं होता था। क्योंकि उनके परिवार का सदस्य बाहर पढ़ने गया होता था।”

“इलाहाबाद विश्वविद्यालय की फीस 300 रुपये हुआ करती थी। मेहनत से जोड़कर पढ़ाई की। इसका फल भी मिला। इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में टॉप किया। बीए और एमए के दौरान गुरुओं और साथियों से बहुत कुछ सीखने को मिला। इसी सीख ने हमें गढ़ा है”,

प्रोफेसर लक्ष्मण आगे बताते हैं,

“इलाहाबाद यूनिवर्सिटी से निकलकर मैं जब दिल्ली गया, तब मुझमें आईएएस बनने का सपना था। प्रतियोगी परीक्षा में मैंने नेंट जेआरएफ की परीक्षा पास कर ली। गांव-देश मे लोगों की यही सोच थी कि इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में टॉप करने वाला मैं आईएएस अधिकारी बनूंगा।”

आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण ली फेलोशिप

प्रोफेसर बताते हैं, ‘मैं दिल्ली आईएएस बनने के सपने से आया था। आर्थिक स्थिति मजबूत नहीं थी। घर वालों का कहना था कि पढ़ाई के लिए लंबे समय तक दिल्ली में रख पाना मुश्किल है। फेलोशिप के लिए दिल्ली में पीएचडी में एडमिशन लिया।’

“हम पीएचडी कर रहे थे। इस दौरान हमने प्रोफेसर बनने के सपने को उड़ान दी और पहली बार दोस्तों के साथ लक्ष्मीबाई कालेज गया था। इस कॉलेज का माहौल ऐसा था कि दो मिनट के इंटरव्यू में ही मना कर दिया गया। हमें कहा गया हम बच्चे हैं। जिसके बाद हम जाकिर हुसैन कॉलेज में इंटरव्यू देने गए। यह तारिख थी 31 अगस्त 2010। मैं अपने दोस्तों के साथ यह निर्णय लेकर गया था कि इंटरव्यू खराब नहीं होने देंगे। इस इंटरव्यू में दर्जनों लोगों में मुझे चुना गया। मेरी उम्र महज 21 साल थी”,

ये सारी बाते उन्होंने द मूकनायक से बताई है.

https://m.themooknayak.com/article/obc-news/pro-laxman-yadav-fired-from-job-know-what-is-the-whole-matter/3710d3f2-5de4-4451-ad57-34e9dd2de4a3

प्रोफेसर लक्ष्मण यादव दिल्ली विश्वविद्यालय से संबंधित जाकिर हुसैन कॉलेज में पिछले 14 सालों से पढ़ रहे थे हिंदी विभाग के एडहॉक असिस्टेंट प्रोफेसर थे लेकिन उन्हें पिछले साल 6 दिसंबर 2023 को बाबा साहब भीमराव अंबेडकर के परिनिर्माण दिवस के दिन ही जाकिर हुसैन कॉलेज के द्वारा बिना किसी वाज़िब कारण बताए ही टर्मिनेट कर दिया गया और उनके जगह पर नए प्रोफेसर की नियुक्ति कर दी गई नतीजन लक्ष्मण यादव समेत उनके चाहने वालो में मातम का माहौल पसर गया शहर से लेकर गांव तक चर्चाएं होने लगी गली-गली से लेकर के रोड, चौक चौराहे तक लोग लक्ष्मण यादव के टर्मिनेशन पर बात करने लगे की लक्ष्मण यादव की तीखी तेवर से सरकार डर गई और लक्ष्मण यादव की प्रोफेसर के पद को छीन लिया, लक्ष्मण यादव के लिए कुछ लोग सड़क पर भी उतरे लेकिन लक्ष्मण यादव के लिए पहले जैसा कुछ अच्छा नहीं हुआ

“प्रोफेसर लक्ष्मण यादव को जाकिर हुसैन कॉलेज से टर्मिनेट कर दिया गया है इस खबर को प्रोफेसर लक्ष्मण यादव अपनी सोशल मीडिया अकाउंट से पोस्ट करके लोगों को बतायी “,

https://twitter.com/DrLaxman_Yadav/status/1732421220916981794?s=19

कहां मिलेगी “प्रोफेसर की डायरी”

हाल ही में लक्ष्मण यादव ने प्रोफेसर की डायरी नामक एक किताब लिखि इस किताब को अनबॉउंड स्क्रिप्ट पब्लिकेशन ने पब्लिश किया है और अब पाठकों के हाथों में यह किताब पहुंचने लगी है आपको अमेजॉन पर भी मिल जाएगी और नीचे अनबॉउंड स्क्रिप्ट की ऑफिशल वेबसाइट है वहां से भी आप प्रोफेसर की डायरी ऑर्डर कर पढ़ सकते हैं अब जब प्रोफेसर की डायरी लोगों के हाथों तक पहुंचने लगी है तो लोग अपनी प्रतिक्रिया भी देने लगे हैं तो उनमें से कुछ लक्ष्मण यादव के खास चाहने वालों ने अपनी प्रतिक्रिया दी है जिसे लक्ष्मण यादव सोशल मीडिया पर शेयर करने से ख़ुद को नहीं रोक पाए,

हफ्ते भर से प्रोफेसर की डायरी अमेजॉन की किताबों वाली कैटेगरी में बेस्ट सेलर श्रेणी में प्रथम स्थान पर ट्रेंड कर रहीं हैं

अमेजॉन अमेजॉन पर ऑर्डर कर सकते हैं

https://amzn.eu/d/5Qh3dQ9

अनबाउंड स्क्रिप्ट की ऑफिशल वेबसाइट नीचे है https://books.unoundscript.com/product/professor-ki-diary/

डॉ लक्ष्मण यादव के प्रोफेसर की डायरी के बारे में क्या बोली जनता

जाकिर हुसैन कॉलेज की एक महिला प्रोफेसर जो लक्ष्मण यादव की मित्र है जो प्रोफेसर की डायरी को पढ़ा और सबसे पहले अपनी प्रतिक्रिया दी जिसे लक्ष्मण यादव सोशल मीडिया पर शेयर किया

“मेरी किताब पर सबसे पहली प्रतिक्रिया. आप पढ़ते हुए समझ जाएँगे कि शजर ने मुझे बेहद ख़ूबसूरत और आत्मीय लोग दिये. उन्हीं में से एक की ये टिप्पणी है. मैं इसे पढ़ते हुए इतना भावुक हुआ कि साझा करने से ख़ुद को रोक न सका. बहरहाल आप भी किताब पढ़कर अपनी प्रतिक्रिया ज़रूर दें”

‘कैसे हो लक्ष्मण ?फेसबुक पर तुम्हारी पुस्तक का लिंक देखा और उसी वक्त बुक भी कर दी. एक जमाने बाद मैंने कोई किताब एक ही बैठक में पढ़ भी डाली.जो तकलीफ तुम्हारा अपॉइंटमेंट ना होने पर हम सब ने महसूस की थी आज दोबारा ताजी हो गई. अपने जीवन के संघर्ष को तुमने बेहतरीन तरीके से इस पुस्तक के माध्यम से प्रस्तुत किया मुझे लगता है कि कहीं भी किसी पर सीधा टिप्पणी न करके तुमने अच्छा ही किया.कॉलेज का तुम्हारा पहला दिन और बीच में बहुत सी यादें कॉलेज से जुड़ी यूनिवर्सिटी से जुड़ी और तुम्हारा अंतिम पैगाम शजर छीन लिया 6 दिसंबर 2023.लक्ष्मण तुम एक बेहतरीन ‘प्रोफ़ेसर’ रहे हो और अपने बच्चों के लिए हमेशा एक बेहतरीन अध्यापक के रूप में ही रहोगे भी. लक्ष्मण तुम्हें मैं अक्सर अपनी क्लास के बराबर वाली कक्षा में क्लास लेते देखती रही हूं. हमारी क्लास बराबर में ही होती थी और तुम्हारी कक्षा से निकलने वाले बच्चों की आंखों में जो चमक मुझे नज़र आई, एक सुकून मिलता था कि बच्चे तुमसे बहुत कुछ सीख कर निकल रहें हैं.तुम्हारे इस बेहतरीन सफ़रनामे के लिए मुबारकबाद. इसी तरह निडर होकर लिखते रहो पढ़ते रहो आगे बढ़ते रहो. मेरी शुभकामनाएं तुम्हारे साथ हैं. मैं तुम्हारे कभी भी किसी भी तरह काम आ सकूं तो मैं अपने आप को बहुत खुशकिस्मत समझूँगी. इस तरह लिखने पर बेहद भावुक हूँ बाकी बातें फिर कभी. खुश रहो’

~ एक महिला प्रोफेसर जाकिर हुसैन कॉलेज

दूसरी प्रतिक्रिया है लक्ष्मण यादव के किसी खास विद्यार्थी की जिसे खुद लोगो के बीच शेयर किया प्रोफेसर लक्ष्मण यादव ने

‘किताब पर मेरे किसी विद्यार्थी की सबसे पहली प्रतिक्रिया. मेरे दोस्तों, मेरे कलीग और मेरे विद्यार्थियों को मालूम है कि मैं क्या हूँ. उनके बीच न रहकर भी उनके दिलों में रहने का सुकून अनमोल है. इस प्रतिक्रिया को साझा करने का मोह संवरण न हुआ. इसे मन करे तो आप भी पढ़िएगा. इसे उन ज़ालिमों को भी पढ़ना चाहिए. तुमने शजर छीनकर अच्छा नहीं किया. मेरे चाहने वालों के दिल में मेरी इस जगह को कैसे छीन सकोगे? ,

‘किताब रात में मेरे पास आयी। सोचा कि अगले दिन से पढूँगा लेकिन तभी याद आया कि कॉलेज में सर को जाते हुए देख कर उनसे वादा लिया था कि “सर किताबें वगैरा जरूर लिखिएगा ताकि आपकी बात हम विद्यार्थियों तक पहुंचते रहे”, सर ने भी कहा था “अभी एक किताब पूरी कर रहा हूँ, वह जल्द छप जाएगी”।फिर सोचा सर ने तो अपना वादा पूरा किया तो हम भी पढ़ने लगे। पढ़ते हुए लगने लगा कि इसमें तो ऐसी तमाम घटनाओं का जिक्र है जो आज विद्यार्थियों और शिक्षकों के जीवन में घट रही हैं।सर ने लिखा भी है “रोहित विमला और उन जैसी अधूरी रह गई अनगिनत संभावनाओं के नाम”। जो भी छात्र यहां रोहित जैसे सपनों को लेकर चल रहे हैं यह किताब उन सभी के संघर्षों को एक हारी हुई मगर बुलंद आवाज में प्रदर्शित करती है।छात्र और शिक्षक अपनी रीढ़ को सही करते हुए एडहॉक प्रणाली, नई शिक्षा नीति और कैंपस में जातिवाद के खिलाफ प्रतिदिन लड़ रहे हैं, हारते हैं लेकिन फिर इस उम्मीद से खड़े हो उठते हैं कि अगर लड़ाई लड़ी गई तो शायद आगे कोई रोहित ना बनेगा तथा आगे उन तमाम रोहित वेमुला को हिम्मत मिलेगी। उसे भी लगेगा कि कोई तो है जो हमारे साथ लड़ रहा है, जो कि आज रितु सिंह के करीब 170 दिन के लड़ाई में देखने को मिल रहा है।कॉलेज में जिस दिन लक्ष्मण सर का आखिरी दिन था उसी दिन हमारे आंदोलन का तीसरा दिन था। लक्ष्मण सर कॉलेज से विदा लेते हैं और उधर हमारा आंदोलन चल रहा होता है। तभी अचानक कॉलेज के शिक्षक जिनका जिक्र सर ने अपनी पुस्तक में “तौकीर अनवर” के रूप में किया है। वह आते हैं और कहते हैं “अगर आप लोग नारेबाजी करते रहेंगे तो मुझे लगा कि मैं भी लक्ष्मण का दोषी हूं मैं अपने आप को माफ नहीं कर पाऊंगा”।तभी सर की बातों को मानकर हम आंदोलन को उस दिन स्थगित कर देते हैं मगर यह आंदोलन अभी भी ऑनलाइन और पोस्टर बैनर के जरिए कॉलेज में चल रहा है।किताब में सबसे अच्छी बात यह लगी कि सर ने कॉलेज का नाम बदलकर ऐसे नाम रखे हैं जो कि तमाम उन संघर्षों को बल देता है जो शिक्षा के बेहतरी के लिए विश्वविद्यालयों में कायम हैं।जब एक छात्र किराए के कमरे में रहकर अपनी पढ़ाई करें और पढ़ाई करने के बाद रोजगार न मिलना,उन्हें जातिवाद का सामना करना पड़ता है तब रोहित होने का खतरा बढ़ जाता है। सर की किताब इसी ओर हमे इंगित करती है।आज इसी हालात के खिलाफ वह तमाम रितु सिंह और लक्ष्मण यादव लड़ रहे हैं यह सोचकर कि “लाज़िम है के हम भी देखेंगे”।और जो इस जुल्म को देखकर चुप हैं उनके लिए चे-ग्वेरा की एक पंक्ति है जो कि लक्ष्मण सर अपने भाषण में या हमें कॉलेज में अक्सर कहा करते थे ” मैंने कब्रिस्तान में उन लोगों की कब्रें भी देखी है जिन्होंने इसलिए संघर्ष नहीं किया कि कहीं वे मारे न जाएं”।आपका एक विद्यार्थी जय भीम इंकलाब जिंदाबाद✊✊✊#प्रोफ़ेसर_की_डायरी#


-प्रोफेसर लक्ष्मण यादव का एक विद्यार्थी

प्रोफेसर लक्ष्मण यादव को जब जाकिर हुसैन कॉलेज से निकाल दिया गया, टर्मिनेट कर दिया गया जिसके बाद लक्ष्मण यादव को जनता ने अपना प्रोफेसर बना लिया जनता का प्रोफेसर,

लोगों का कहना है कि प्रोफेसर यादव अब पहले से ज्यादा खुलकर बोल सकेंगे पहले से ज्यादा बेहतरीन लिख सकेंगे पहले से ज्यादा सरकार को मुद्दे पर घेर सकेंगे

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