वर्तमान समय में भारत कि राजनीति में चल हलचल से अंदाजा लगाया जा सकता है कि लगभग लोगों कि जुबान पर सिर्फ एक पार्टी का नाम सुनने को मिल रहा है पिछले 9 सालों में भाजपा ने जिस तरीके से लोकसभा चुनाव में 30 सालों के बाद 2014 में पूर्ण बहुमत कि सरकार बनाई थी। और उसी रिकॉर्ड को कायम रखने के लिए फिर से देश कि जनता का मूड भाजपा के पक्ष में गया और भाजपा पुनः 2019 के लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत हासिल करने में सफल रही। लेकिन भाजपा ने उन सभी रिकॉर्ड कि बराबरी अभी नहीं किया जो रिकार्ड भारतीय राजनीति कि सबसे पूरानी पार्टी के पास है। कांग्रेस भारतीय राजनीति में सबसे ज्यादा दिनों तक शासन करने वाली पार्टी है इस पार्टी ने सबसे ज्यादा प्रधानमंत्री दिया लेकिन कई मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी को काफी आलोचना का सामना करना पड़ा जैसे कि एक ही परिवार से तीन प्रधानमंत्री।
आईए रिकॉर्ड कि बात करते हैं
रिकार्ड की बात करे तो कांग्रेस के पास 90% से अधिक वोट प्रतिशत प्राप्त करने का रिकार्ड है। आइए जानते हैं। कब कब कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत और जनसमर्थन प्राप्त हुआ था जिस कांग्रेस पार्टी को 2014 में अपने सबसे खराब दौर से गुजरना पड़ा वो दौर कभी कांग्रेस पार्टी ने नहीं देखा था कांग्रेस पार्टी का अब तक का सबसे अच्छा सक्सेज रेट 1957 में हुए लोकसभा चुनाव में 92% था। 1952 में हुए पहले लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को 90% यानी 401 में से 364 सीटें मिली थीं। वहीं 1957 में दूसरे चुनाव में उसे 403 में से 371 यानी 92% सीटें जीतीं थीं। इंदिरा गांधी की हत्या के बाद 1984 में हुए चुनाव में कांग्रेस का तीसरा सबसे अच्छा प्रदर्शन रहा। इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी कि एक लहर चल पड़ी थी जिसमें कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या की वजह से भारतीयों की संवेदना कांग्रेस पार्टी के साथ थी और इस चुनाव में कांग्रेस पार्टी को 543 में से 76% यानी 415 सीटें मिलीं। इसके बाद कांग्रेस की लोकप्रियता घटती गई क्योंकि गांधी परिवार के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी जी की भी हत्या हो गई और पार्टी में कलह शुरू हो गई जिसके परिणामस्वरूप कांग्रेस की सीटें घटती गईं। फिर उसके बाद सिर्फ एक बार 2009 में उसने 200+ का आंकड़ा पार किया और 206 सीटें जीतीं। इसके बाद 2014 में कांग्रेस को महज 44 सीटें मिलीं, यह कुल सीटों का महज 8% हिस्सा थी।
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देश के चुनावी इतिहास में कांग्रेस का यह सबसे खराब प्रदर्शन था। भाजपा को सबसे ज्यादा सीटों तक पहुंचने में 30 साल लगे, 10 साल में उसकी सीटें दोगुनी हुईं जनसंघ के जनता पार्टी में विलय और फिर इसके टूटने के बाद 1980 में भाजपा अस्तित्व में आई। पार्टी ने 1984 में पहला चुनाव लड़ा और 2 सीटों पर जीत हासिल की। 1989 के चुनाव में भाजपा राम मंदिर को मुद्दा बना चुकी थी। और पूरे देश भर में भाजपा ने धर्म को मुद्दा बनाया और उसने इस चुनाव में 86 यानी 15% सीटें हासिल कीं और नेशनल फ्रंट सरकार को समर्थन दिया। इसी बीच, लालकृष्ण आडवाणी ने रथ यात्रा निकाली। जिसका असर पूरे उत्तर भारत में देखने को मिला।1991 में दोबारा चुनाव हुए और भाजपा की सीटें बढ़कर 120 यानी 22% हो गईं। 1996 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को 161, 1998 में 1982 और 1999 में 182 सीटें मिलीं। 2004 में उसकी सीटें घटकर 138 हो गईं। 2009 में सीटें और भी कम होकर 116 पर आ गईं। लेकिन 2014 में उसने वर्तमान गुजरात राज्य के मुख्यमंत्री के चेहरे पर चुनाव लडा़ और अब तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया और सबसे ज्यादा 282 सीटें हासिल कीं। यह कुल सीटों के मुकाबले 52% थीं।
जनता पार्टी
जनता दल दो साल में शीर्ष से उतरी पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने जब भारत में आंतरिक अशांति के आधार पर इमरजेंसी लगाई थी तब विपक्ष की पार्टीयों ने एक गठबंधन बनाया। इमरजेंसी के बाद 1977 में हुए लोकसभा चुनाव में इंदिरा विरोधी कई दलों ने एकजुट होकर जनता पार्टी बनाई। इसमें जनसंघ, भारतीय लोकदल, कांग्रेस (ओ) जैसी प्रमुख पार्टियां शामिल थीं। 41% वोटों के साथ जनता पार्टी ने अपने पहले ही चुनाव में 295 सीटें जीतीं। और मोरारजी देसाई प्रधानमंत्री बने।इमरजेंसी के खिलाफ लोगों का गुस्सा और विपक्षी एकजुटता इस चुनाव में पार्टी की जीत का बड़ा कारण रही। महज 2 साल में ही जनता पार्टी अपने अर्श से फर्श पर पहुंच गई।
नेताओं के बीच मतभेद हुए और पार्टी टूट गई। मोरारजी देसाई को पद छोड़ना पड़ा और चौधरी चरण सिंह कांग्रेस के समर्थन से प्रधानमंत्री बने। जनता पार्टी के टूटने के बाद बड़े चेहरों ने अपने-अपने दल बनाए। इसके बाद 1996, 1999 और 2004 के चुनाव में पार्टी को एक भी सीट नसीब नहीं हुई। 2013 में पार्टी का भाजपा में विलय हो गया।
जनता दल
पहले चुनाव में ही सत्ता, फिर लगातार पतनवीपी सिंह ने जन मोर्चा, जनता पार्टी, लोकदल और कांग्रेस-एस को एकजुट कर 1988 में जनता दल की नींव रखी। 1989 के चुनाव में पार्टी ने बिना किसी चेहरे के 143 सीटें हासिल कि। भाजपा और लेफ्ट के समर्थन से जनता दल की सरकार बनी। यह जनता दल का सबसे अच्छा प्रदर्शन था। 1996 के चुनाव के बाद जनता दल टूटने लगा। 1998 में पार्टी को महज 6 सीटें मिलीं। 1999 के चुनाव के पहले पार्टी पूरी तरह खत्म हो गई। इसमें शामिल बड़े चेहरों नीतीश कुमार, लालू प्रसाद यादव, जैसे बड़े नेताओं ने जदयू, जेडीएस, राजद, बीजद जैसे दल बनाए।